Lohri 2025: लोहड़ी का पर्व हर साल मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है। लोहड़ी सिख समुदाय के लिए यह बेहद ही ख़ास पर्व है। मुख्य रूप से लोहड़ी का पर्व पंजाब , हरियाणा में मनाया जाता है। लेकिन अब देश के बाक़ी हिस्सों में भी यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन अग्नि देव की पूजा की जाती है। इस बार लोहड़ी का पर्व कब मनाया जाएगा। आइए आगे जानते है।
कब है लोहड़ी 2025?
यह पर्व 13 जनवरी को मनाया जाता है। और 2025 में यह सोमवार को पड़ेगा। लोहड़ी की ख़ासियत यह है कि इसे अलग- अलग क्षेत्रों में अलग नामों से जाना जाता है। जैसे तमिलनाडु में पोंगल , असम में भोगाली बिहु , गुजरात में उत्तरायण और मध्य भारत में मकर संक्रांति।
लोहड़ी 2025 तारीख़ और समय
लोहड़ी का त्योहार हर बार की तरह 13 जनवरी 2025 को है। और इस बार लोहड़ी संक्रांति का क्षण 14 जनवरी की सुबह 9 बजकर 3 मिनट तक रहेगा। इसके बाद सूर्य देव मकर राशि में गोचर करेंगे। मकर संक्रांति 14 जनवरी 2025 , मंगलवार को मनाया जाएगा।
लोहड़ी का महत्व 2025
लोहड़ी का पर्व हर साल पौष माह में मनाया जाता है। लोहड़ी को फसल पकने और अच्छी खेती के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग सूर्य देव पीरी अग्नि देवता की आराधना करते है। लोहड़ी के दिन रबी की फसल कि कटाई और सर्दियों के दिनों के ख़त्म होने और बसंत के आने का प्रतीक है। इस दिन लोक गीत दुला भट्टी वाला गया जाता है। पंजाबी और सिख परिवारों में शादी के बाद पहली लोहड़ी को बहुत धूम- धाम से मनाया जाता है। साथ ही घर में बच्चा होने की ख़ुशी में पहली लोहड़ी को हर्ष और उल्लास के साथ मनाते है। इस दौरान लोग नाचते- गाते है। और ढोल नताड़ो पर नाचते- गाते है।
लोहड़ी का इतिहास और परंपरा
लोहड़ी शब्द लोह से निकला है। जो एक बड़े तवे को दर्शाता है। यह सामूहिक भोजन और एकजुटता का प्रतीक है। यह पर्व हिमालय क्षेत्र में ठंडी सर्दियों के बाद रबी फ़सलो की कटाई के समय मनाया जाता है। ऐतिहासिक रूप से, महाराजा रणजीत सिंह के शासन काल में लोहड़ी को शाही दरबार में भी मनाया जाता था।
लोहड़ी का ज़िक्र दुल्ला भट्टी की कहानी के बिना अधूरा है। दुल्ला भट्टी , जिन्हें पंजाब रॉबिनहुफड के नाम से जाना जाता है। ने कमजोरो की मदद की और ग़रीब लड़कियों की शादी करवाई। आज भी दुल्ला भट्टी के सम्मान में लोकगीत गाए जाते है।
लोहड़ी संबंधित रीति रिवाज
लोहड़ी पंजाब एवं हरियाणा का प्रसिद्ध त्योहार है। लेकिन अब इस पर्व को देश के अन्य हिस्सों में भी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन किसान ईश्वर के प्रति अपना आभार प्रकट करते है। जिससे फ़सल के उत्पादन में वृद्धि हो।
- इस दिन पंजाब के कुछ भागो में पतंगे उड़ाने का भी रिवाज है।
- लोहड़ी उत्सव के दौरान बच्चे घर-घर जाकर लोकगीत गाते है। और लोग उन्हें मिठाई और पैसे देते है।
- ऐसी मान्यता है की इस दिन बच्चों को ख़ाली हाथ लौटाना उचित नहीं माना गया है। इसलिए उन्हें चीनी , गज़क, गुड़ , मूँगफली तथा मक्का आदि दिया जाता है। इसे ही लोहड़ी कहते है।
- इसके पश्चात संध्या के समय सभी लोग एकत्र होकर आग जलाते है। और लोहड़ी को सभी में बाँटते है। संगीत और नृत्य के साथ लोहड़ी का जश्न मनाते है।
- रात को सरसों का साग , मक्के की रोटी और खीर आदि सांस्कृतिक भोजन को खाकर लोहड़ी की रात का लुत्फ़ लिया जाता है।
तिल और मूँगफली का महत्व
लोहड़ी के ज़रिए लोग भगवान से अच्छी फसल की कामना करते है। और सालभर खेती में बरकत की प्रार्थना करते है। इस दिन अग्नि देव का पूजन किया जाता है। और उनको अच्छी फ़सल के प्रति आभार प्रकट करने के लिए आग में तिल और मूँगफली डाले जाते है। इसके अलावा यह भी कहते है। कि सर्दियों में तिल और मूँगफली का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा होता है।
लोहड़ी का श्रीकृष्ण से है रिश्ता
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण को मारने के लिए उनके मामा कंस ने लोहिता राक्षसी को नंदगाँव भेजा था। जब लोहिता नंदगाँव में पहुँची तो वहाँ सभी लोग मिलकर मकर संक्रांति का पर्व मना रहे थे। ऐसे में मौक़े का फ़ायदा उठाकर लोहिता राक्षसी ने श्री कृष्ण को मारने की कोशिश की लेकिन वह इसमें असफल हो गई। इसके बाद श्री कृष्ण ने उनका वध कर दिया जब लोगों को लोहिता के वध के बारे में पता चला तो मकर संक्रांति से 1 दिन पहले लोहड़ी का त्योहार मनाया जाने लगा।